स्वाभिमान श्री शिव शंकर मैथिल का वह खण्ड काव्य है,जो दशानन रावण के व्यक्तित्व के विशिष्ट गुण स्वाभिमान को अति भास्वर रूप चित्रित करने के अपने उद्देश्य पूर्ण सफल रहा है । भला एक स्वाभिमानी भाई अपनी बहिन का अपमान कैसे सह सकता है ।उसने रक्षा सूत्र का पूरा निर्वहन किया, वह कहता है यदि बात मान की हो तो उस पर एक नहीं सौ सौ लंकाओं की बलि दी जा सकती है । एक ऐसा खण्ड काव्य जिसे प्रारम्भ करके शायद ही कोई रसिक पाठक अन्त के पूर्व नहीं छोड़ना चाहेगा,
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