‘लम्हों से संवाद’ के पश्चात् ‘समय से संवाद’ डॉ• मुक्ता का दूसरा नज़्मों का संग्रह व सत्रहवाँ काव्य-संग्रह है, जिसमें 110 नज्में हैं। इनमें मानव मन में उमड़ती भावनाएँ व संवेदनाएँ हैं, जज़्बात व एहसास हैं, जो अल्फ़ाज़ों का लिबास धारण कर समय से गुफ़्तगू करते हैं। यह भाव-लहरियाँ कभी हृदय को उल्लसित-आनंदित करती हैं, तो कभी आहत व व्यथित करती हैं और कभी दिव्यानुभूति करा जीवन नौका को वेदना के असीम जल में छोड़ तिरोहित हो जाती हैं, जहाँ व्यक्ति स्वयं को किंकर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में पाता है। ‘समय से संवाद’ की नज़्में सकारात्मक संदेश प्रेषित करती हैं, जीने की प्रेरणा देती हैं और मानव को निष्काम कर्म करने का संदेश देती हैं। समय निरंतर चलता रहता है। सो! निराशा किस लिए– ‘जो आज है, कल रहेगा नहीं, जो आया है, अवश्य जाएगा, फिर उसके जाने का शोक क्यों? यह नज़्में मानव को आश्वस्त व प्रेरित करती हैं, धैर्य बंधाती हैं तथा बीच राह से न लौटने का संदेश प्रेषित करती हैं। फलतः वह अपने पथ पर निरंतर अग्रसर होता रहता है और अंत में मंज़िल तक पहुंच जाता है। इन नज़्मों में स्वयं से गुफ़्तगू व संवाद है, आत्मावलोकन का भाव है, चिंतन-मनन है, धर्म, दर्शन, अध्यात्म व सामाजिक विसंगतियों-विद्रूपताओं का यथार्थ चित्रण है। ‘समय से संवाद’ की नज़्मों में कहीं बच्चों में बढ़ती उद्दण्डता का भाव है, तो कहीं पति-पत्नी में बढ़ते अंतर्द्वंद्व से उपजता अलगाव भाव है, कहीं इस भूल-भुलैया से मुक्त हो जाने के लिए जीवन-माँझी से गुहार है, तो कहीं रिश्तों में बढ़ रहा अजनबीपन का एहसास है। कहीं मुखौटाधारी लोगों के कटु यथार्थ को उजागर करती नज़्मों में अपने-बेग़ानों का अंकन है, तो कहीं मानव को ‘एकला चलो रे’ की सीख व कहीं मानव व संसार की नश्वरता का दिग्दर्शन है। इन नज़्मों के अलग-अलग तेवर हैं, कलेवर हैं। वे कभी हमारे चित्त को उद्वेलित करती हैं, तो कभी चिंतन-मनन करने को विवश करती हैं। ***
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