लम्हों से संवाद में लम्हों के एहसास हैं,जज़्बात हैं,भावनाएं हैं,संवेदनाएं हैं तथा मानवीय अनुभूतियों व हृदय में उमड़ती-घुमड़ती भावनाओं का लेखा-जोखा संचित है। संवेदनाओं के साथ उनके प्रेरणा-स्त्रोत समाज,धर्म,अध्यात्म, राजनीति व अनेकानेक समसामयिक विसंगतियों का भी चित्रण है। आजकल चहुँओर अविश्वास का वातावरण पसरा है।सो! कोई भी संबंध पावन नहीं रहा और ना ही रही है रिश्तों की अहमियत,क्योंकि संदेह,संशय,शक़,अविश्वास आदि रिश्तों में ऐसी खाई उत्पन्न कर देते हैं,जिसे पाटना और वहाँ से लौट पाना मानव के लिए असंभव हो जाता है।साहित्य मानव को आगम से परिचय कराता है और सजग व सचेत रहने का संदेश देकर आत्म-दीपोभव का दायित्व-वहन करता है; मानव को दिव्य चेतना से आप्लावित व ऊर्जस्वित करता है। लम्हों से संवाद की नज़्में जहाँ मानव को जीवन के कटु यथार्थ से परिचित कराती हैं, वहीं सत्यम्,शिवम्,सुंदरम् का दिग्दर्शन कराती हैं ताकि मानव स्व अर्थात् अहंनिष्ठता के भाव से ऊपर उठ सके।परिणामत: स्वस्थ,सजग व सुंदर समाज की संरचना हो सके और उसे दिव्यानन्दानुभूति प्राप्त हो सके–यही सनातन सत्य है और जीवन का सुंदर स्वप्न भी है।इसे संजोने के निमित्त निरंतर निष्काम कर्म करना मानव का प्राथमिक कर्त्तव्य है।इसलिए हमें यथासमय लम्हों से गुफ़्तगू अवश्य करनी चाहिए,क्योंकि यह आत्मावलोकन व आत्म-साक्षात्कार का सहज सोपान हैं।
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