“राधा-कृष्ण प्रीत संग होली” पुस्तक में व्रज की महिमा ब्रज की अद्भुत होली , जो अपने आप में ही एक अलौकिक आनंद देती रही है, उसी प्रेम और रंग-रागों का संगम प्रत्येक साहित्यकारों ने अपनी-अपनी क़लम से वर्णन करने का प्रयास किया है । कान्हा और राधा की एक प्राचीन किंवदंती में यह सुनने में आया है की, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी नटखट शरारती भावना से खेल-खेल में राधारानी और उनकी सहेलियों के साथ हाँसी-ठिठोली कर चेहरे पर रंग डाल दिया, जिसका जवाब राधे-रानी और उनकी सहेलियां डंडे से दिया करती थी । जिसका निर्वहन आज तक ब्रज-बरसाना में “लट्ठमार होली” के रूप में मनाया जाता है । होली के दिन ब्रज के प्रत्येक गलियारों में सुनहरी पिचकारी से रंग-बिरंगे फ़व्वारे छूटते है और अबीर-गुलाल से रंगी हवायें, अद्भुत आकाश में रमणीय चित्र बनाते है, जिसे देख स्वयं देवता भी भारत भूमि में जन्म लेना चाहने लगते है ।तत्तपश्चात् होली-पर्व, हिंदू धर्म के प्राचीन उत्सवों में से प्रमुख माना गया है, जिस कारण इसे परंपरा और अनुष्ठानों से भरा द्वि-दिवसीय वैदिक-पर्व भी कहा जाता है । हिंदू धर्मावलंबी भारतीय लोग होली के पर्व को विशेषकर प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की प्राचीन कथानुसार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में याद कर के मनाते है । इस पुस्तक में हर साहित्याकारों ने अपनी होली के त्योहार की यादों को ताज़ा कर , अपनी-अपनी उम्दा लेखनी प्रस्तुत करने की कोशिश की है ।

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