‘मैं शायर तो नहीं’ मेरी तीसरी (हार्ड कॉपी) ग़ज़ल और शायरी संग्रह है जो मैं आपके बीच ला रही हूं। जिसका वास्तविक उद्देश्य आपके ऑनलाइन मिले स्नेह को संजोना है व उन्हें सदेव के लिए सुरक्षित कर लेना है। यह किताब मेरी विभिन्न मनःस्थिति को आपसे रूबरू करवाने का प्रयास है जो मुझे लेखन के दौरान महसूस हुई। हमारे विभिन्न दृष्टिकोण हमारे मानसिक व सामाजिक सरोकार को कैसे प्रभावित करते है व हम कब क्या महसूस करते है का यह पुस्तक बस एक नजरिया है, स्पष्टता कम से कम मेरे दृष्टिकोण को तो आप ये पुस्तक पढ़ कर समझ ही जाएंगे। और अंत में इतना ही कहूंगी कि आप अपना स्नेह इसे अपनी आत्मजा समझ कर दे। सभी को सादर प्रणाम व वंदन।
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