‘नारी नयी : व्यथा वही’ केवल नारी की व्यथा-कथा का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि उसके ग़लत दिशा में बढ़ते कदमों का लेखा-जोखा भी है, जिसे देख हृदय उद्वेलित हो उठता है; आक्रोश उपजता है। वह गुप्त की उर्मिला व प्रसाद की श्रद्धा नहीं है, जो सुसंस्कारों से सिंचित है; मर्यादा को नहीं लाँघती; जीवन-मूल्यों को हृदय से स्वीकारती है। उसमें आस्था व गहन विश्वास है। वह संवेदनशीलता की प्रतिमूर्ति है तथा केवल अधिकारों के प्रति सजग नहीं है। परंतु नयी नारी इसके सर्वथा विपरीत है। वह अब आधी ज़मीन ही नहीं; पूरा आकाश चाहती है। नारी को कानून द्वारा समानाधिकार प्राप्त हैं। परंतु उसके कदम ग़लत दिशा की ओर अग्रसर हैं। क्लबों में जुआ खेलने, सिगरेट के क़श लगाने व शराब के पैग लगाने में वह हर्षानुभूति करती है। इस संग्रह की कविताओं से गुज़रते हुए आप चिंतन-मनन करने को विवश हो जाएंगे कि इस स्थिति के लिए दोषी कौन है ? आज भी नारी की स्थिति वही है– केवल पात्र बदले हैं। पहले नारी पर ज़ुल्म किए जाते थे; आज उसका पति व परिवारजन आशंकित रहते हैं कि उन्हें कभी भी कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। वे दहशत में जी रहे हैं। उनकी मन:स्थिति का बखान करने की चेष्टा की है मैंनें। इस संग्रह की कविताओं से रूबरू होते हुए आप चिंतन-मनन करने को विवश हो जाएंगे।

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