दुःख, हार, परेशानियां, संघर्ष, आदि आखिर ये सब मेरे जीवन में क्यों? क्यों है इतनी परेशानियां? हमेशा मेरे साथ ही बुरा क्यों होता हैं? ऐसे कई सवाल हमने कितनी ही बार खुद से पूछे होंगे और यह जायज भी हैं। हम सभी का जीवन अनेकों या कहें अंतहीन दुखों, परेशानियों, व्याधियों से भरा हुआ है, लेकिन इसका कारण क्या हैं? इन सबका हमारे जीवन में अस्तित्व क्या हैं ? इन्हीं प्रश्नों के सवालों को ढूंढने की यात्रा हैं ,”दुःख,आखिर क्यों?” इस उपन्यास में वसुंधरा के जीवन की वो कहानी है, जो उसके दुख और निराशा से भरे जीवन को आत्मज्ञान की प्राप्ति के सफर में बदल जाता हैं। यह उपन्यास वसुंधरा के जीवन के रूप में हम सभी की जिंदगियों का आईना है, जो हर कदम पर कठिनाइयों से घिरा हुआ हैं। यह उपन्यास जीवन की उन गहरी सच्चाइयों को उजागर करता है और समझाता है, जो हर व्यक्ति के भीतर छुपी होती हैं। यह उपन्यास केवल एक कहानी मात्र नहीं है बल्कि यह एक माध्यम है, स्वयं के सवालों का जवाब ढूंढने का और इसी के साथ यह उपन्यास एक कोशिश है, खुद के जीवन को बेहतर तरीके से जानने और समझने की । तो आइए, वसुंधरा के साथ हम सभी भी समझते है जीवन की कठिनाइयों को, दुखों को और अग्रसर करते है खुद को आत्मज्ञान के सफर पर।
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