जब किसी संवेदनशील हृदय की पीड़ा बढ़ जाती है तो वह अभिव्यक्ति का कोई-न-कोई सार्थक मार्ग ढूँढ लेती है और पाठकों तक पहुँच जाती है, जिसका प्रमाण है यह काव्य-संग्रह – ‘अस्मिता’। यह 2007 में प्रकाशित हुआ तथा कुछ समय पश्चात् इनका पंजाबी भाषा में अनुवाद हुआ और अनुवादित कविताओं को पाठकों द्वारा खूब सराहा गया। ‘अस्मिता’ के प्रकाशन के लगभग 17 वर्ष पश्चात् संयोगवश हरियाणा प्रदेश के रोहतक ज़िले के युवा साहित्यकार पवन गहलोत ने इसकी कविताओं से प्रभावित होकर इन्हें हरियाणवी में अनुवाद करने में रुचि जतलाई। उनकी इच्छा जानकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ, क्योंकि किसी भी रचना का एक से अधिक भाषा में अनुवादित होना न केवल उस कृति के लिए, बल्कि अन्य भाषा के पाठकों के लिए भी उपयोगी व लाभकारी होता है। सो! मैंने तुरंत सहर्ष सहमति दे दी और अब ‘अस्मिता’ काव्य-संग्रह हरियाणवी के पाठकों के लिए भी उपलब्ध है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इन समसामयिक कविताओं को हिन्दी और पंजाबी भाषा के पाठकों की भाँति हरियाणवी भाषा के पाठकों का भी भरपूर स्नेह प्राप्त होगा। अनुवाद कौशल के साथ एक कला भी है। इसमें तकनीकी ज्ञान के साथ अनुवादक की व्यक्तिगत एवं साहित्यिक समझ भी काम करती है। अनुवाद की डगर पर चलना सरल कार्य नहीं है। इस कार्य में किसी एक भाषा के निकटतम समरूप शब्द का प्रयोग करते हुए शब्दानुवाद के साथ ही भावानुवाद भी का विशेष ध्यान रखना होता है। इस तरह किसी रचना के मूल भाव व उसकी आत्मा को जीवित रखते हुए उसे दूसरी भाषा में रूपांतरित करना एक चुनौती भरा कार्य होता है। ‘अस्मिता’ काव्य-संग्रह की कविताओं का अनुवाद करते समय अनुवादक पवन गहलोत ने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि तथा अनुवाद कौशल के साथ ही अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता का भी परिचय दिया है। हिन्दी भाषा के कुछ शब्दों को यथावत् रखा गया है, ताकि उनकी खूबसूरती बरक़रार रह सके। इतना ही नहीं, आंचलिक शब्दों के प्रयोग ने भी इस अनुवाद कार्य की गुणवत्ता मे वृद्धि की है। परिणामत: इस संग्रह की लगभग सभी कविताएँ अनूदित नहीं बल्कि मूल कविताएँ भासती हैं। उनके इस श्लाघनीय कार्य के लिए मैं उनके प्रति आभार व हार्दिक शुभ कामनाएँ व्यक्त करती हूँ कि उन्हें अनुवाद के क्षेत्र में अपार सफलता मिले। शुभकामनाओं सहित आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में – शुभेच्छु, डॉ मुक्ता।
Reviews
There are no reviews yet.